गुरु नानक देव जंयती : गुरूपुरब

 


कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन गुरू नानक जंयती मनाया जाता है सिख धर्म के लोग दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक मास पूर्णिमा को गुरू नानक जंयती के रूप में मनाते हैं इसे गुरूपुरब या प्रकाश पर्व भी कहा जाता है क्यो कि गुरु नानक देव जी ने समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों को दूर करके लोगों के जीवन में प्रकाश रूपी ज्ञान भर दिया इसलिए उनके जन्म दिवस को सिख धर्म के अनुयायी हर बर्ष प्रकाश पर्व के रूप मे बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं और लोग इस दिन गुरूद्वारे जाकर नानक देव जी के सामने मत्था टेकते हैं 

 गुरु नानक देव जी का जन्म लगभग आज से 551 वर्ष पहले 51वीं सदी में 15 अप्रैल 1469 में तलवंडी, शेखपुरा जिला (अब का ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान में है) हुआ था उनके पिता का नाम मेहता कालू जी तथा माताजी का नाम तृप्ता देवी जी थे , नानक देव जी का नाम उनके बड़ी बहन नानकी के नाम पर रखा गया था। इनके पिता गांव में तलवंडी में पटवारी थे। 

नानक देव जी को कई भाषाओं का ज्ञान था जिसमें फारसी, पंजाबी, खड़ी बोली और अरबी भाषा भी है 

वे बचपन से ही अध्यात्म और भक्ति की तरफ आकर्षित थे । लड़कपन से ही ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे, पढने लिखने में भी मन नहीं लगा।

 गुरु नानक देव के मना करने के बावजूद इनका विवाह बालपन अवस्था में सोलह वर्ष की आयु में 24 सितंबर 1487 को सुलक्खनी से कर दिया गया । इनके दो पुत्र भी थे जिनका नाम था श्रीचंद और लखमीदास। और श्रीचंद आगे चल कर उदासी संप्रदाय के प्रवर्तक हुए।

नानक देव जी ने पूरे देश भर में घुम कर उपदेश दिये।साथ ही नानक देव जी अफगानिस्तान, फारस, अरब के प्रमुख स्थानो का भ्रमण किया और उपदेश दिये।

उन्होंने अपना जीवन यात्रा करने और उपदेश, संदेश देने में बिताया। संगीत को अपना संदेश देने का माध्यम बनाया। 

जीवन के अंतिम दिनों नानक देव जी करतारपुर नामक एक नगर बसाया, एक बड़ी धर्मशाला वहां बनवाई। और इसी स्थान से 22 सितंबर 1539 को परमात्मा में विलीन हो गये।

नानक देव जी ने परलोक वास होने से पहले उन्होंनें 

 अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो आगे चलकर गुरू अंगद देव के नाम से जाने गए।

गुरु नानक देव जी का कुछ प्रसिद्ध उपदेश-

- ईश्वर एक ही है उसका नाम सत्य है 

-हमें सिर्फ वही बातें बोलनी चाहिए जिनसे सम्मान मिलें 

-उसकी चमक से सबकुछ प्रकाशमान है 

-भगवान एक है, लेकिन उसके कई रूप हैं वो सभी का निमार्णकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है 

- जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है 

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