THE TEN PRINCIPAL Upanishads by - Shree purohit and W.B yeats

 असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।

  अर्थात - असत्य से सत्य की ओर मुझे ले चलो अंधकार से ज्योति की ओर मुझे ले चलो मृत्यु से अमृत की ओर मुझे ले चलो।



आप लोगों में से बहुत से जरूर कहीं न कहीं इस मंत्र का मंत्र उच्चारण सुने होंगे। ये मंत्र उपनिषद से लिया गया है उपनिषद अपने आप में एक लाइब्रेरी की तरह है।

एक अमर साहित्य है जो हम भारतवासियों को हजारों सालों से अंधकार से प्रकाश और असत्य से सत्य की ओर जाने में मार्गदर्शन या रास्ता दिखाने का काम करता आ रहा है।


उपनिषद के बारे में कहा जाता है। उपनिषद् की रचना 1000 से 300 ई.पू. की गई थी। उपनिषद कुल संख्या लगभग 108 है। यह भारत का सर्वोच्च मान्यता प्राप्त विभिन्न दर्शनों का संग्रह है। वेद के बाद लिखे जाने के कारण इसे वेदांत भी कहा जाता है। उपनिषद भारत के अनेक दार्शनिकों, जिन्हें ऋषि या मुनि कहा गया है, उनके जो अनेक वर्षों के गम्भीर चिंतन-मनन( तपस्या) का परिणाम है। उपनिषदों को आधार मानकर और इनके दर्शन (ज्ञान) को अपनी भाषा में लिख कर या उपनिषद की विचार पर विश्व के अनेक धर्मों और विचारधाराओं का जन्म हुआ। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक उपनिषद-ग्रन्थों की संख्या में से मुख्य 10 उपनिषद सर्वमान्य हैं। उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। जिसमें से प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि है।


हमारे भारत के बहुत से प्रसिद्ध और महान विद्वानों ने में उपनिषद के बारे में क्या कुछ कहे है चलिए जानते हैं।


स्वामी विवेकानन्द जी कहते थे, की जब 'मैं उपनिषदों को पढ़ता हूँ, तो मेरे आंसू बहने लगते हैं। यह कितना महान् ज्ञान है? हमारे लिए यह आवश्यक है कि उपनिषदों में सन्निहित तेजस्विता को अपने जीवन में विशेष रूप से धारण करें। हमें शक्ति चाहिए। शक्ति के बिना काम नहीं चलेगा। यह शक्ति कहां से प्राप्त हो? उपनिषदें ही शक्ति की खानें हैं। उनमें ऐसी शक्ति भरी पड़ी है, जो सम्पूर्ण विश्व को बल, शौर्य एवं नवजीवन प्रदान कर सकें। उपनिषदें किसी भी देश, जाति, मत व सम्प्रदाय का भेद किये बिना हर दीन, दुर्बल, दुखी और दलित प्राणी को पुकार-पुकार कर कहती हैं- उठो, अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और बन्धनों को काट डालो। शारीरिक स्वाधीनता, मानसिक स्वाधीनता, अध्यात्मिक स्वाधीनता- यही उपनिषदों का मूल मन्त्र है।'


हमारे देश नोबल पुरस्कार विजेता विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी उपनिषद् बारे में कहते हैं।


‘सारे पृथ्वी मण्डल में मूल उपनिषद् के समान इतना फलोत्पादक और उच्च भावोद्दीपक ग्रन्थ कहीं भी नहीं है। इसने मुझको जीवन में शान्ति प्रदान की है और मरण में भी यह शान्ति देगा।’


केवल भारतीय जिज्ञासुओं (ज्ञानी महात्मा) की ध्यान ही उपनिषदों की ओर नहीं गया है, अनेक पाश्चात्य देशों ( western countries)के विद्वानों ने भी उपनिषदों को पढ़ने और समझने का कोशिश किया है। तभी वे इन उपनिषदों में छिपे ज्ञान के स्वरूप से प्रभावित हुए है। इन उपनिषदों की महान विचारधारा, मूल ज्ञान चिन्तन विचार, धार्मिक अनुभूति तथा अध्यात्मिक जगत् की रहस्यमयी ज्ञान अभिव्य्क्तियों से वे प्रभावित होते रहे हैं और आपने मुख से इनकी प्रशंसा करते आये हैं।


इन्ही western countries के एक -प्रो० मैक्समूलर कहते है -


उपनिषदों के ज्ञान से मुझे अपने जीवन के उत्कर्ष में भारी सहायता मिली है। मैं उनका ऋणी हूँ। ये उपनिषदें आत्मिक उन्नति के लिए विश्व के धार्मिक साहित्य में अत्यन्त सम्मानास्पद रही हैं और आगे भी रहेंगी।’


-दाराशिकोह जो एक इस्लामिक ज्ञानी ने कहा था ।


मैंने कुरान, तौरेत, इञ्जील, जबुर आदि ग्रन्थ पढ़े, उनमें ईश्वर सम्बन्धी जो वर्णन है, उनसे मन की प्यास न बुझी। तब हिन्दुओं की ईश्वरीय पुस्तकें पढ़ीं। इनमें से उपनिषदों का ज्ञान ऐसा है, जिससे आत्मा को शाश्वत शांति तथा सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है। हजरतनवी ने भी एक आयत में इन्ही प्राचीन रहस्यमय पुस्तकों के सम्बन्ध में संकेत किया है।’


इन्ही सबमे से एक आइरिश कवि है। W. B yeats और उनके भारतीय सहयागी श्री पुरोहित जी ने उपनिषद् के वर्जन को आपने तरीके से एक बुक लिखे हैं जिसका नाम है। The ten principal Upanishads


तो चलिए दोस्तो आज हम शुरू करने जा रहे हैं W.B yeats और श्री पुरोहित के बुक थे की summary ko जानते हैं। वेदों, उपनिषद या गीता का पाठ करना या सुनना प्रत्येक आदमी को सुनना चहिए।उपनिषद और गीता का स्वयं अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है। 







Lesson-1


ईशावास्योपनिषद् -


हिंदू धर्म में 4 वेद है। इन्हीं वेदों का ज्ञान उपनिषदों में भी है। इनकी संख्या 108 मानी गई है। उपनिषद् न होते तो वेदों का मूल ज्ञान हम समझ नहीं पाते।


ईशावास्योपनिषद् समस्त उपनिषदों में प्रथम उपनिषद् है।



शुक्लयजुर्वेद संहिता का चालीसवां अध्याय ही ईशावास्योपनिषद के नाम से जाना जाता है। शुक्ल यजुर्वेद में पहले 39 अध्याय धार्मिक कर्मकांड से संबंधित है। जबकि चालीसवां अध्याय ज्ञान के रूप में है। शुक्ल यजुर्वेद के इस 40वें ज्ञान कांड संबंधी अध्याय को ही ईशावास्योपनिषद् के रूप में जाना जाता है। इस उपनिषद् के पहले ही मन्त्र में ईशावास्यम शब्द आया है। इसी आधार पर इसका नाम ईशावास्योपनिषद् रखा गया है। ईशावास्यम शब्द का अर्थ है- ईश्वर से व्याप्त।


इस उपनिषद् में जीवन के ऐसे सूत्र बताए गए हैं। जिन पर चलकर मनुष्य सफल, सुखद एवं समृद्ध जीवन जी सकता है। यह वही ज्ञान है जो कि महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था।


 यह उपनिषद् कहता है कि जीवन में प्राप्त सुखों का उपभोग त्याग के साथ करना चाहिए। अर्थात् समस्त कर्मों एवं कर्तव्यों का पालन ईश्वर की उपासना मानकर ही करना चाहिए।


ऊपरी तौर पर भले ही संसार में रहकर कर्तव्यों एवं कर्मों का पालन करना चाहिए, किंतु मन सें संसार का त्याग करना चाहिए।


 उपनिषद् कहता है कि मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता अत: विषय भोगों से दूर रहकर ईश चिंतन के लिए एवं आत्मचिंतन के लिए भी पूरे दिलो-दिमाग से नियमित समय निकालना चाहिए।


 संसार में जीते हुए भी यह बात सदैव याद रखी जाए कि यह संसार और इससे जुड़ी हर चीज एक दिन हमसे अलग हो जाएगी।


 ईशोपनिषद् की यही शिक्षा है कि मनुष्य को अपना जीवन अनासक्त हो कर अर्थात् संसार और संसार से जुड़ी चीजों व रिश्तों से मोह न पालते हुए सारा जीवन परमात्मा को समर्पित करके जिया जाए तो दुख, अभाव व भय न रहेगा।


उपनिषद् यह कहता है कि मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता। इसके हर एक क्षण का उपयोग आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु करना चाहिए। यदि इस अमूल्य मनुष्य जीवन का सदुपयोग न हो सका तो बार-बार पशुयोनियों में जन्म लेना पड़ेगा।


Conclusion-


भाषा और संस्कृति किसी भी देश (राज्य) और सभ्यताओं की तरह जड़ और मरणशील नहीं होती। बल्कि निरंतर बढ़ती रहती हैं।


भारत की साहित्यिक परंपरा 4000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है और इस दौरान संस्कृत की प्रधानता थी- पहले वैदिक और बाद में शास्त्रीय रूप में।

वैदिक काल के बाद उपनिषद का रचना हुआ था। उपनिषद् न होते तो वेदों का मूल ज्ञान हम समझ नहीं पाते। वेद को समझाने और वेद के ज्ञान को जन जन तक आसान भाषा में समझने के लिए उपनिषदों का रचना किया गया था।



उपनिषद् की शिक्षा है वेदांत जो सारे ज्ञान का सार है जो अनेकों ज्ञानी पुरुषों के द्वारा सर्वोच्च तथा सबसे उपदेश या ज्ञान है।


उपनिषद् ऐसा साहित्य है जिसमें प्राचीन ऋषि और मनीषियों ने यह महसूस किया था कि अंतिम विश्लेषण में मनुष्य को स्वयं को पहचानना होता है।


उपनिषदों का ज्ञान सिद्धांत है ब्रह्म तथा आत्मा एक है और ब्रह्म को छोड़कर बाकी सब मिला हुआ है।

ऋग्वेद एवं सामवेद एक सबके लिए एक समान समाज के मनोभावों( उद्देश) को व्यक्त करते हैं वहीं यजुर्वेद एवं अथर्ववेद उत्तर वैदिक समाज( वैदिक काल के बाद के समय) में शुरू हुए विभाजन को दर्शाते हैं।


उपनिषद लोगों के जीवन की उस अवस्था को व्यक्त करते हैं जब लोग भौतिक जीवन( शरीर रूपी जीवन) के स्तर से ऊपर उठकर मनन एवं चिंतन( ध्यान ) के प्रति भी अपना रुझान दिखाने लगे थे।


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