Tata stories By- Harish Bhat

 



हम जानते हैं कि आज भारत तरक्की और बेहतरी की रास्ते पर जा रहा है रोज ही तरक्की की कीर्तिमान स्थापित कर रहा है आज हमारा भारत दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। क्या आप जानते हैं हमारा देश जब आजाद हुआ था तब हमारे देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी। भारत जब आजाद हुआ तब तक अंग्रेजों ने भारत की सारी समृद्धि और संपदा शोषण कर चुके थे हमारे देश के पास कुछ नहीं बचा था। पहले के पहले से ही हमारे देश की बड़ी आबादी गरीबी और भुखमरी के शिकार थे। आजादी के बाद हमारे देश के सामने काई बड़ी चुनौती थी। जिसमे सबसे गरीबी और भुखमरी की थी। देश की बड़ी आबादी खेती और कृषि के काम से जुड़े हुए थे। कारखानों और इंडस्ट्रीज के नाम पर हमारे देश में कुछ नहीं थे। लेकिन एक नाम था जो देश के तरक्की और विकास केलिए काम कर रहा था टाटा।


टाटा एक ऐसा नाम है जिससे हमारे देश का बच्चा बच्चा जनता है,देश की तरक्की और विकास में टाटा ग्रुप की बहुत बड़ी योगदान है। टाटा ग्रुप इंडियन ग्लोबल बिजनेस है यह बात हम गर्व से बोल सकते हैं लेकिन टाटा ग्रुप की इस सक्सेस का राज क्या है कैसे टाटा ग्रुप का सफर शुरू हुआ टाटा ग्रुप में काम का कल्चर क्या है कल्चर क्या है नाम पावर पैसा और सक्सेस सब कुछ है टाटा ग्रुप के पास लेकिन ऐसा क्या है जो उन्हें दुनिया के बाकी मल्टीनेशनल कंपनी से अलग बनाता है।आज टाटा ग्रुप नमन से लेकर एयरलाइंस तक सबकुछ बीते कई सालों से भारत की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभा रही है।


टाटा का राष्ट्र निर्माण का 150 साल का इतिहास है। हजारों सुंदर, अद्भुत कहानियां इस लंबे समय में नृत्य करती हैं, जिनमें से कई हमें प्रेरित और प्रेरित कर सकती हैं, यहां तक ​​कि हमें अपने जीवन में महत्वपूर्ण कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।

भारत की पहली वाणिज्यिक एयरलाइन और पहली स्वदेशी कार की आकर्षक कहानी; कैसे 'ओके टाटा' ने भारत की सड़कों पर लाखों ट्रकों के पीछे अपनी जगह बनाई; 


 #TataStories टाटा समूह के व्यक्तियों, घटनाओं और स्थानों की अल्पज्ञात कहानियों का एक संग्रह है जिसने आज हम जिस भारत में रहते हैं उसे आकार दिया है। टाटा स्टोरीज के लेखक हरीश भट्ट कई सालों से टाटा परिवार से जुड़ी ये कहानियां सुनते आ रहे थे उन्हें लगा कि इन कहानियों को एक जगह पर लिखकर किताब बनाई जाए जो देश और दुनिया के सभी युवाओं के लिए एक इंस्पिरेशन का काम कर सके।



हरीश भट्ट, जो वर्तमान में टाटा संस में ब्रांड कस्टोडियन हैं, ने पिछले 34 वर्षों से टाटा समूह के लिए काम किया है, जिसमें टाटा ग्लोबल बेवरेजेज के प्रबंध निदेशक और टाइटन कंपनी लिमिटेड के घड़ियों और आभूषण डिवीजनों के मुख्य परिचालन अधिकारी शामिल हैं।


 हरीश भट्ट बिट्स पिलानी और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (IIMA) से स्नातक हैं। बाद में उन्हें अकादमिक उपलब्धि के लिए आईआईएम-ए स्वर्ण पदक और युवा प्रबंधकों के लिए ब्रिटिश शेवनिंग छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया। BITS पिलानी ने उन्हें 2017 में विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार से सम्मानित किया।

इस किताब पर चर्चा करते हुए हम आपको टाटा परिवार से जुड़ी कुछ कमाल की कहानियां सुनाएंगे यकीन मानिए कहानियों का यह सफर बहुत ही मजेदार होने के साथ-साथ इंस्पिरेशनल भी होने वाला है।


हम जानेंगे कि सफलता के शिखर पर पहुंच कर भी टाटा परिवार समाज और देश को नहीं भूला।


टाटा परिवार की दरियादिली से जुड़ी यह कहानियां आपके लिए एंटरटेनमेंट के साथ-साथ लाइफ लेसन भी साबित होने वाले हैं तो जुड़े रहिए हमारे साथ हम शुरु कर रहे हैं टाटा स्टोरीज बुक की समरी


 स्वामी विवेकानंद १-

जुलाई 1893 को दोपहर 3:40 बजे भारत की ocean linear Empress of India जहाज जापान के योकोहाम बंदरगाह से रवाना हुए। ब्रिटिश कोलंबिया कनाडा में बैकूतर की अपनी यात्रा पर था। जहाज में कुल 770 यात्री यात्रा कर रहे थे जिसने 120 प्रथम श्रेणी में 50 द्वितीय श्रेणी में और 600 steerage में यात्रा कर रहे थे।

इसी जहाज में दो ऐसे यात्री थे जो बाद में अपने अपने तरीके से भारत को आकर देगे।

एक थे स्वामी विवेकानंद उस समय अज्ञात युवा सन्यासी जो अमेरिका के शिकागो में विश्व संसद के लिए जा रहे थे, जो उस वर्ष सितंबर में होने वाले थे वह भारत और हिंदू का प्रतिनिधित्व करने सभी धर्मों के सबसे बड़े वैश्विक धर्म का संसद के समारोह में अपने विचार और संदेश देने अमेरिका की यात्रा कर रहे थे।

दूसरे जमशेदजी टाटा जो मुंबई के जाने-माने व्यापारी और टाटा ग्रुप के संस्थापक थे वह जापान में शिपिंग पर चर्चा के लिए गए थे और वह भी स्वामी जी की तरह विश्व को कोलिबियाई प्रदर्शनी का दौरा करने शिकागो जा रहे थे। जहां विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति का प्रदर्शन होने जा रहा था। यह नियति थी। शायद कि वह जहाज पर एक दूसरे से मुलाकात हुई और दोनों बात कर रहे थे दोनों जिज्ञासु सोच थे और दोनों लगाता है अपने राष्ट्र के भविष्य के बारे में सोचते रहते थे। बाद में स्वामी जी ने किसी और के माध्यम से जमशेदजी से पूछा था कि उन्हें भारत में जापानी मैच बॉक्स क्यों आयात करते हैं उसके बजाय उन्हें भारत में ही इस की फैक्ट्री लगानी चाहिए इससे रोजगार भी पड़ेगा और भारत का राजस्व भी बचेगा शायद स्वामी जी के बातों का ही प्रभाव था जो कि बाद में कुछ सालों बाद टाटा ग्रुप ने नागपुर में एंप्रेस मिल की शुरुआत किया था। इसके बाद 1898 में भारतीय विज्ञान संस्था की स्थापना के लिए महत्वकांक्षी योजनाओं की के लिए तैयार हुए तो जमशेदजी टाटा ने स्वामी विवेकानंद को 28 November 1898 को पत्र लिखें। जिसमें उन्होंने बताया कैसे स्वामी जी की बातों ने उन्हें देश में कारखाने और शिक्षण संस्थान को लगाने के लिए प्रभावित किया उन्होंने इस पत्र में अपनी यात्रा के बारे में भी विस्तार से वर्णन किया।

इस बीच, भारत की एसएस महारानी एक शानदार यात्रा के बाद 25 जुलाई 1893 को वैंकूवर में अपने गंतव्य पर पहुंच गई। यदि हम समय पर पीछे मुड़कर देखें, तो हमने इन दोनों महापुरुषों को ब्रिटिश कोलंबिया के इस हलचल भरे बंदरगाह से उतरते देखा होगा। वे जल्द ही शिकागो की ओर बढ़ेंगे, देश के लिए महान सपने और आकांक्षाओं को लेकर वे पूरे दिल से प्यार करते थे।



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